प्राणायाम दो शब्दों से मिलकर बना है प्राण व आसन| प्राण का अर्थ है जीवन शक्ति और आसन का अर्थ है बैठने की मुद्रा अर्थात प्राणायाम श्वास के माध्यम से आपके शरीर में नाड़ियों तक वायु पहुंचती है इसका सही मतलब यह है कि आप के प्राण का विस्तार करना|
प्राणायाम क्या है
बहुत लोग प्राण का अर्थ श्वास लगाते हैं और प्राणायाम नाम का अर्थ श्वास तथा व्यायाम बताते हैं किंतु यह धारणा गलत है वह प्राण वह शक्ति है जो वायु से समस्त सजीव और निर्जीव पदार्थों में व्यक्त होती है निसंदेह इसका संबंध श्ववास लिए जाने वाली वायु से है इस दृष्टि प्राणायाम का शाब्दिक अर्थ हुआ प्राण या आयाम यानी विस्तार करना प्राणायाम का उद्देश्य शक्ति प्राप्त करना वह शरीर को नियंत्रण रखना है
प्राणायाम की विधि
स्थान
प्राणायाम का स्थान संगठन शुद्ध शांत व हवादार होना चाहिए किसी बगीचे में आसन बिछाकर प्राणायाम करें जहां सीधी और तेज हवा लगती हो भीड़ भाड वाली जहां पर या जहां पर अधिक से ज्यादा शोर हो वहां पर परिणाम ना करें|
समय
प्राणायाम के अभ्यास का सबसे अच्छा समय सुबह-सुबह है क्योंकि उस समय वायुमंडल शांत रहता है और वायु शुद्ध होती है वह मल मूत्र त्यागने के बाद ही प्राणायाम के आसन का अभ्यास करना चाहिए शुरू में 10 से 20 मिनट तक अभ्यास करें इसके बाद रोज आधा या एक घंटा अभ्यास करें कभी कम कभी ज्यादा देर तक प्राणायाम नहीं करना चाहिए
आसन मुद्रा
सभी प्रकार के प्राणायाम सिंहासन या पद्मासन में बैठकर ही करनी चाहिए प्राणायाम करते समय शरीर का कोई भी अंग हिलना ढोलना नहीं चाहिए और शरीर के किसी भी हिस्से में तनाव नहीं होना चाहिए दोनों हाथ दोनों घुटनों पर ज्ञान की स्थिति में रखनी चाहिए आंखें धीरे से बंद करनी चाहिए प्राणायाम करने से पहले थोड़ी देर सांस स्वभाविक रूप से लें
आसन विधि
प्राणायाम केवल सांस लेने और छोड़ने की क्रिया नहीं है प्रणायाम करते समय आपका ध्यान पूर्ण रूप से श्वास पर रखना चाहिए प्रणायाम करते समय सांस लेने और छोड़ने की गति बिल्कुल धीमी होनी चाहिए प्रणायाम करते समय नाक के दाएं बाएं छिद्रों को बंद कर लेना चाहिए यह काम दाहिने हाथ के अंगूठे से करें जब प्रणायाम में नाक पकड़ने की आवश्यकता ना हो तो दोनों हाथ आपके घुटने पर होने चाहिए|
प्राणायाम में श्वास की तीन क्रियाएं
- पूरक अथवा श्वास को अंदर लेना
- रोचक अथवा श्वास को बाहर निकालना
- कुम्भक अथवा श्वास को अंदर या बाहर रोकना

प्राणायाम के पंच प्राण
मानव शरीर को क्रिया भेदों के आधार पर इसे पांच प्राणों में विभाजित किया गया है इन पांचों प्राणों को पंच प्राण कहा जाता है जिनका वर्णन इस प्रकार है
1.प्राण
यह कंठ से ह्रदय तक व्याप्त होता है यह प्राण शक्ति को बढ़ाने में सहायक है
2.अपान
यह मूसलाधार चक्कर के पास स्थित होता है जो वायु व बड़ी आत को बल देता है और बल मूत्र को त्यागने में सहायता देता है
3.समान
नाभि से हृदय तक रहने वाली वायु को समान कहती हैं यह प्राण शक्ति और पाचन संस्थान तथा उससे निकलने वाले रसों को नियंत्रण करती है
4.उदान
कंठ से मस्तिष्क तक रहने वाली वायु को उदान कहते हैं इस प्राण शक्ति द्वारा कंठ के ऊपर के अंग आंख कान नाक मस्तिष्क आदि नियंत्रण होते हैं इसके अभाव से हमारा मस्तिष्क अच्छी तरह से काम करता है
5.ध्यान
वह प्राण शक्ति जो संपूर्ण शरीर में व्याप्त होती है इसका मुख्य स्थान स्वाधिष्ठान चक्र है यह शरीर की अन्य शक्तियों और प्राणवायु में सहयोग स्थापित करती है और सारे शरीर की गतिविधियों पर नियंत्रण रखती है
प्राणायाम संबंधी कुछ आवश्यक बातें जाने
- भोजन करने के 3 या 2 घंटे बाद इस आसन को करना चाहिए सुबह खाली पेट यह आसन करने से आपको अधिक लाभ होता है
- प्रणायाम करते समय शीतकाल शीतली शीतकारी प्राणायामो का अभ्यास ना करें
- गर्मियों में सूर्यभेदन का अभ्यास ना करें
- एकाग्रता को बढ़ाने के लिए भामरी प्रणायाम करें इससे मन स्थिर रहता है
- प्रणायाम करते समय आपके मन को शांति प्राप्त होनी चाहिए