अष्टांग योग के अंतर्गत 5 अंग आते हैं (यम नियम आसन प्राणायाम तथा प्रत्याहार) इसके शेष अन्य अंग (धारणा ध्यान समाधि) है परंतु अष्टांग योग के कुल आठ अंग माने जाते हैं
अष्टांग योग के आठ अंग
योग भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में सबसे प्रसिद्ध है और सभी लोग इसे दिन में एक बार जरूर करते हैं अन्य लोगों के मुकाबले अष्टांग योग सबसे प्रसिद्ध है और इसमें आठ अंग माने जाते हैं
1.यम
अष्टांग योग का प्रथम अंग यम है इस योग का उद्देश्य है अहिंसा ना करना दूसरों को कष्ट ना देना सदा सत्य बोलना चोरी ना करना संजय ना करना वह दूसरों की चीजों पर लालच ना करना
2.नियम
यम को धारण करने के बाद इस नियम की बारी आती है इसके भी पांच अंग है सोच, संतोष, तप, स्वाध्याप और ईश्वर प्रतिधान इन अंगों को ग्रहण करने के बाद ही इसका दूसरा चरण पार किया जा सकता है
3.आसन
वैसे तो स्वस्थ रहने के लिए कई योग है जिन से अच्छी तरह स्वस्थ रहा जा सकता है लेकिन अष्टांग योग में आसन का अर्थ है बिना हिले डुले एक स्थान एक स्थिति में आसन पर बैठना
4.प्राणायाम
प्राणायाम का अर्थ या प्राणी आणि सांस लेने की ऊर्जा को ग्रहण करना अष्टांग योग से हमारे शरीर में ऊर्जा का नियंत्रण अच्छी तरह से बना रहता है
5.स्वाध्याप
स्वाध्याप का अर्थ होता है रोकना या वापस लेना ही हो के दौरान लंबी सांस लेना और उसे थोड़ा सा रोकना वह छोड़ने के बाद सांस वापस लेना
6.धारणा
धारणा का अर्थ होता है आसन में रहते हुए अपने चित्र को एक ही विचार या किसी एक ही वस्तु पर केंद्रित करना
7.ध्यान
जब अष्टांग योग करते हैं तो ध्यान की स्थिति उत्पन्न हो जाती है ध्यान ईश्वर के अनेक उन्नत व्यापक स्वरूप जैसे शांति, दिव्य, प्रकाश, प्रेम, ज्ञान आदि प्रतीकों को दर्शाता है
8.समाधि
सबसे अंत में समाधि की स्थिति आ जाती है जिससे व्यक्ति ध्यान में महसूस करता है कि सभी मनुष्य उस एक ईश्वर की संतान है जिसे लोग अल्लाह, भगवान, गुड कहकर पुकारते हैं व उसकी उपासना करते हैं
हमने आपको इस लेख में बताया कि अष्टाग योग कोई योगासन नहीं है बल्कि योग का एक आधार है जिससे कर्म योग के माध्यम से ज्ञान की प्राप्ति होती है